Friday 4 November 2011

माँ

तस्वीर   से   झाँकती
    तुम्हारी   आँखे ,
मुझसे   पूछती   है ,
कैसी    हो ?
  मेरी बेटी /
और  मैं    हो  जाती   हूँ
व्याकुल /
फिर   तुम  बिखरा    कर
ओठों   पर 
मुस्कान ,
देती   हो  मुझे   संबल /
समझाती   हो ,
जीवन   के   रहस्य /
बिलकुल   वैसे  ही ,
जैसे   बचपन   मैं ,
थाम   कर
मेरी   ऊँगली  ,
सिखाया   था  तुमने   चलना /

मैं   करती    हूँ  प्रश्न,
तुमसे   कई   बार /
ऐसी    भी   क्या ?  जल्दी   थी  /
अभी  तो  अधूरी   थी कई   बातें /
कम   से  कम  ,
मेरे   लिए  ,
कुछ   दिन   और  ठहरती /
जब  मैं  अपने ,
मातृत्व    को   समेंट   कर ,
बेटी  को   करती  बिदा ,
तब  केवल  तुम  ही ,
समझ   सकती   थी  ,
मेरी   व्यथा /

तब   थाम   कर  मेरा  हाथ   ,
समझाती   ये   बात  ,
कि   बिछडना   तो  ,
जीवन   की   नियति    है
पर  ये  न  हो  सका /
समय   से  पहले  ,
बिछड   कर ,
टूट  गया   है  मेरा   संबल /
अब  मैं  अकेली ,
कैसे   सम्हालू
दुनियाँ   के  डरावने    छल /
कभी  चलती   हू /
कभी  लडखडाती  हू /
सारी   शक्ति    समेट कर ,
खड़ी   हो   जाती   हूँ /
और   करती  हूँ  ,
दुनियाँ   से  लड़ने  की   तयारी /
सच  कहती  हूँ ,  '' माँ ''
इन   पलों   मैं  ,
बहुत    याद   आती  है ,
तुम्हारी ....../
 



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