वो हाथ पोंछ कर आँचल से ,
बर्तन को करती इधर उधर /
चावल की हांडी खाली है ,
विपदा से जाती सिहर सिहर /
आँखों मैं बस इतना सपना ,
वो थोड़ा अन्न कमाएगी /
ये महगाई जब कम होगी ,
वो जी भर खाना खायेगी /
नित सुबह सबेरे उठती है ,
टुकड़ों टुकड़ों मैं बटती है /
बस भूक मिटाने की खातिर ,
दिन भर मजदूरी करती है /
महंगी लगती रुखी रोटी ,
तो साग कहाँ से खायेगी /
ये महगाई जब कम होगी ,
वो जी भर खाना खायेगी /
तन मैं पल रहा है जो अंकुर ,
वो भीतर तकता टुकुर टुकुर /
मींठे मींठे सपने लेकर ,
बाहर आने को है आतुर
माँ की ममता भी राह तके ,
लालन को गोद खिलाएगी /
ये महगाई जब कम होगी ,
वो जी भर खाना खायेगी /
फिर चिंता से होकर आतुर ,
वो चुप चुप अश्रु बहाती है /
इन बूंदों से आँखे धो कर ,
अपने मन को सहलाती है/
जीवन के सरे दुःख सह कर,
साहस का दीप जलाएगी /
ये महगाई जब कम होगी,
वो जी भर खाना खायेगी /
बर्तन को करती इधर उधर /
चावल की हांडी खाली है ,
विपदा से जाती सिहर सिहर /
आँखों मैं बस इतना सपना ,
वो थोड़ा अन्न कमाएगी /
ये महगाई जब कम होगी ,
वो जी भर खाना खायेगी /
नित सुबह सबेरे उठती है ,
टुकड़ों टुकड़ों मैं बटती है /
बस भूक मिटाने की खातिर ,
दिन भर मजदूरी करती है /
महंगी लगती रुखी रोटी ,
तो साग कहाँ से खायेगी /
ये महगाई जब कम होगी ,
वो जी भर खाना खायेगी /
तन मैं पल रहा है जो अंकुर ,
वो भीतर तकता टुकुर टुकुर /
मींठे मींठे सपने लेकर ,
बाहर आने को है आतुर
माँ की ममता भी राह तके ,
लालन को गोद खिलाएगी /
ये महगाई जब कम होगी ,
वो जी भर खाना खायेगी /
फिर चिंता से होकर आतुर ,
वो चुप चुप अश्रु बहाती है /
इन बूंदों से आँखे धो कर ,
अपने मन को सहलाती है/
जीवन के सरे दुःख सह कर,
साहस का दीप जलाएगी /
ये महगाई जब कम होगी,
वो जी भर खाना खायेगी /
बहुत संवेदनशील रचना .
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